कुछ तो बात है कि हस्ती नहीं मिटती जेएनयू की
अगर आप यह जानना चाहते हैं कि जेएनयू में ऐसा क्या है जो इसे तमाम दूसरे विश्वविद्यालयों से अलग करता है तो कल हुए छात्र प्रदर्शन के बारे में सुनिए। इस विश्वविद्यालय के छात्रों को आज जब यह पता चला कि नौसेना में पत्नियों की अदला-बदली की लगभग संस्थागत रूप ले चुकी परंपरा का विरोध करने वाली सुजाता नाम की महिला को दिल्ली पुलिस झूठे मामले में गिरफ़्तार करके लगभग घसीटते हुए वसंत विहार थाने ले गई है तो वे बड़ी संख्या में वहाँ पहुँच गए। उनके पास न तो पोस्टर चिपकाने का समय था न सभा-सम्मेलन करने का। लेकिन इस कैंपस के जुझारू साथी बड़ी संख्या में थाने के बाहर नज़र आ रहे थे। इस भीड़ में देर तक नारा लगाने के बाद थके लेकिन जोश से भरे हुए चेहरों से टपकने वाले पसीने में आने वाले कल की आशा दिख रही थी। प्रगतिशीलता को केवल नौकरी पाने या सत्ता पाने के माध्यम के रूप में देखने वाले लोगों को इस विश्वविद्यालय से बहुत कुछ सीखने की ज़रूरत है। सत्ता के हर घृणित कदम पर विरोध का बिगुल बजाने की चेतना ही प्रगतिशीलता कहलाती है। इससे कम में संतुष्ट होने वाली चेतना या तो सत्ता की दलाली की ओर जाती है या अपने सीमित दायरे