सत्ताधारी वर्ग पेट और भाषा से ऐसे खेलता है
पहले पेट की बात करते हैं। आजकल सरकार मटर की दाल का गुणगान करने में लगी हुई है। अरहर की दाल बहुत महँगी हो गई है और अब तो ऐसा लगता है कि आने वाले दिनों में केवल गंधर्व (सत्ताधारी) ही इस दाल से अपनी सेहत बना सकेंगे। किसानों को गरीबी के कारण आत्महत्या करने को मजबूर करने वाली सरकारों (केवल वर्तमान सरकार को दोष देना ठीक नहीं होगा) ने अब यह साफ़-साफ़ कह दिया है कि हमें मटर की दाल खाना शुरू कर देना चाहिए। सरकार हमें यह बताना चाहती है कि महँगाई के बढ़ने और उदारवादी आर्थिक नीतियों में कोई संबंध नहीं है। अब देखना यह है कि महँगाई पर रोक लगाने में असमर्थ सरकारें आने वाले सालों में हमें क्या-क्या खाने की सलाह देंगी। सत्ताधारी वर्ग को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि जनता क्या खाना चाहती है। सत्ताधारी वर्ग गंधर्वों का जीवन जीता है। इस वर्ग के गंधर्वों को हम जैसे साधारण मनुष्यों से हमेशा यह शिकायत होती है कि हम तिल का ताड़ बनाते रहते हैं। गंधर्वों को लगता है कि किसान भूख या गरीबी के कारण आत्महत्या नहीं करता है। इन गंधर्वों का तलवा चाटने वाले सरकारी अधिकारी और पत्रकार हमें बताते हैं कि आत्महत्या की खबर ...