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मई, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मीडिया और साहित्य की भिड़ंत का नज़ारा

कल 'मीडिया में साहित्य की खत्म होती जगह' विषय पर हुई बहस में मुझे राजेंद्र यादव की यह बात सही लगी कि साहित्य और मीडिया की लड़ाई असल में दो वर्गों की लड़ाई है। मीडिया साधनसंपन्न वर्ग है और साहित्य हमेशा से साधनहीन वर्ग रहा है। साधनसंपन्न वर्ग के पास साधन क्यों है, इस पर किसी वक्ता ने कुछ नहीं कहा। शायद लोग इस बात पर बहस नहीं करना चाहते हैं। किसी सज्जन ने ई-मेल करके आयोजकों से यह सवाल किया कि माओवादियों के मसले पर साहित्य जगत में भयानक चुप्पी क्यों छाई हुई है। इस सवाल का संतोषजनक जवाब देने के बदले यह कहा गया कि मीडिया में भी इस विषय पर सार्थक बहस नहीं हो रही है। मामला 'परस्परं निंदति, छी: रूपं छी: ध्वनि' का हो गया। इस बहस में मीडियाकर्मियों और साहित्यकारों के तनावपूर्ण संबंध पर भी मेरा ध्यान गया। जब तक मीडिया पर लालची पूँजीपतियों का कब्ज़ा है तब तक इसमें साहित्य के नाम पर कूड़ा ही परोसा जाएगा। सुधीश पचौरी ने साहित्य के प्रोडक्शन (जिसे मैं हिंदी में उत्पादन लिखता हूँ) की बात की। क्या सृजन के लिए उत्पादन शब्द का प्रयोग करना सही है? उत्पादन की एक तय प्रक्रिया होती है। क

राजेश खन्ना पर वृत्तचित्र

एक दौर था जब राजेश खन्ना के नाम पर लोग मर-मिटने को तैयार थे। ज़ाहिर-सी बात है कि इन लोगों में लड़कियों की संख्या अधिक थी। एक बार सिनेमा हॉल में फ़िल्म देखते समय राजेश खन्ना के एक दीवाने पर मेरा ध्यान गया। वह हर दृश्य पर ऐसे झूम रहा था जैसे उसे किसी अलौकिक आनंद की प्राप्ति हो गई हो। अब यह तो मनोविज्ञान या समाजशास्त्र के जानकार ही बताएँगे कि एक इनसान पूरे देश की धड़कन कैसे बन जाता है। राजेश खन्ना में ऐसी कौन-सी खूबियाँ थीं कि लोग उनके दीवाने हो गए थे? इस वृत्तचित्र में राजेश खन्ना का आत्मविश्वास देखने लायक है। इस खूबी के साथ उनकी एक कमी भी दिखती है - उनका आत्मकेंद्रित स्वभाव। भारत में स्टार के नखरों से अनजान विदेशी फ़िल्मकर्मी जब सही समय पर इंटरव्यू लेने पहुँचता है तो उसे यह मालूम हो जाता है कि इस देश में समय का सही या गलत होना स्टार तय करता है। बार-बार कोशिश करने के बाद जब वह इंटरव्यू लेने में कामयाब हो जाता है तो उसे धीरे-धीरे बॉलीवुड के बारे में ऐसी बातें मालूम होती हैं जिनका वह अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता था। हममें से अनेक लोग सत्तर के दशक में इस दुनिया में नहीं थे। ऐसे लोगों