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हिंदी समुदाय यानी...

शीर्षक में 'यानी' के बाद आप कुछ भी जोड़ सकते/सकती हैं - गुलाम मानसिकता के शिकार लोगों का समूह, पस्त होने के बाद तटस्थ हो जाने वालों का समूह, ऐसा समुदाय जिसके नायक या तो भूख से मरते हैं या उपेक्षा से, ऐसे लोगों का समूह जो अपनी पहचान भूल चुका है...। आशावादियों के शब्द होंगे - ऐसा समुदाय जो तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपने सपनों को ज़िंदा रखता है...। यह तो हुई आपकी बात। अभी मैं आपको यह बताना चाहता हूँ कि मैं इस समुदाय को किस रूप में देखता हूँ। मैं इस समुदाय को ऐसे कीचड़ के रूप में देखता हूँ जिसमें कमल का खिलना असंभव-सा लगता है। मैं इस बात से इनकार नहीं करता हूँ कि ऐसे हालात भी बन सकते हैं कि अभी असंभव-सा दिखने वाला परिवर्तन भविष्य का यथार्थ बन जाए, लेकिन अभी स्थिति निराशाजनक ही लगती है। कुछ महीनों पहले मैंने नई दिल्ली में इंडिया हैबिटेट सेंटर में भारत के शिक्षा मंत्री के साथ हिंदी के वरिष्ठ आलोचक और हास्य कवि  को एक मंच पर एक जैसी बातें करते सुना। उनकी बातें सुनकर मेरे मन में यह खयाल आया कि नेता की हाँ में हाँ मिलाने वाले आलोचकों और रचनाकारों को ऐसा क्या मिल जाता है कि