आज श्रम दिवस है और मैं आर.डी. बर्मन के बारे में बात कर रहा हूँ
आज श्रम दिवस है और इस मौके पर आर.डी. बर्मन को याद करना कुछ लोगों को अटपटा लग सकता है। मैं ऐसे लोगों को पहले उनके एक गाने के बोल पढ़ने को कहूँगा। "ऐसा क्यों होता है / कोई हँसता है, कोई रोता है / दौलत वालों के हाथों में / हर दिन हम बिकते हैं / बस्ती-बस्ती यही सबकी / तकदीरें लिखते हैं / मेरी-तेरी मेहनत का यूँ / सौदा क्यूँ होता है मेरा-तेरा खून-पसीना सिक्कों में ढलता है / फिर भी अपने घर में चूल्हा / कम-कम ही जलता है / मेरी-तेरी जान का दुश्मन / पैसा क्यूँ होता है जाने क्यूँ पैदा होते हैं / जाने क्यूँ मरते हैं / जब तक जीते हैं जीने का / कर्ज़ अदा करते हैं / बेमकसद-बेकार जीना / मरना क्यूँ होता है / कोई हँसता है / कोई रोता है" लिंक : http://ww.smashits.com/player/flash/flashplayer.cfm?SongIds=50739 ऐसे गाने रेडियो पर शायद ही कभी सुनने को मिलते हैं। श्रम के शोषण से जुड़े मामलों को टीवी और रेडियों दोनों पर अधिक महत्व नहीं दिया जाता है। आज मैं सभी मीडियाकर्मियों से अनुरोध करता हूँ कि वे बर्मन जैसे संगीतकार को केवल 'चुरा लिया है तुमने जो दिल को' जैसे गानों के लिए नही...