प्राइवेट स्कूलों का नरक
प्राइवेट स्कूल का मेरा अनुभव इतना खराब है कि मैं तो पूरे देश में शिक्षा की इन दुकानों को बंद करवाना चाहूँगा।अंग्रेज़ी और सत्ता के घालमेल से उपजी इन दुकानों की घृणित हरकतों का अंदाज़ा तो इन खबरों से ही लग जाता है:
http://khabar.josh18.com/news/10369/3
http://khabar.ndtv.com/2009/02/28134202/Delhi-school-280209.html
इन स्कूलों में पढ़ाई के स्तर की सच्चाई तो मैं एक छात्र के रूप में भी जान चुका हूँ। जब एक शिक्षक पर दो सौ लड़कों की जिम्मेदारी होती है, तो हर छात्र खुद को उपेक्षित महसूस करता है। सीबीएससी की मान्यता के नाम पर ये स्कूल लाखों-करोड़ों कमा रहे हैं, लेकिन छात्रों के हितों से इनका कोई लेना-देना नहीं होता है।
पटना के एक प्राइवेट स्कूल में बड़े अरमानों के साथ दाख़िला लेने के बाद बहुत जल्दी मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया। इस स्कूल में छोटे कमरे में 50-60 छात्रों को पढ़ाया जाता था। हर क्लास में 4-5 सेक्शन होते थे। टीचरों को बच्चों की पढ़ाई से कोई लेना-देना नहीं था। वे क्लास में आते, यंत्रवत् पढ़ाते और किसी के कुछ पूछने पर डाँटने, खीझने आदि का हथकंडा अपनाकर प्रश्न को टालने की कोशिश करते।
इस स्कूल को सीबीएससी की मान्यता कैसे मिली थी, यह आज भी मेरे लिए एक बहुत बड़ा रहस्य है! आज ऐसे स्कूल हर शहर में खुल गए हैं। इन स्कूलों में छात्रों और उनके माता-पिताओं का हर तरह से शोषण किया जाता है।पैसे कमाने के लिए ये 5 रू. की कॉपी को 50 रू. में बेचने से लेकर हर साल बेतहाशा फ़ीस बढ़ाने तक कोई भी हथकंडा अपना सकते हैं।
जिस स्कूल में मैं पढ़ा था, उसके होस्टल में ककड़ वाली ऐसी दाल मिलती थी जो शायद जेल की दाल से भी बदतर थी। लड़कों को एक बड़े हॉल में सोना पड़ता था। हर जगह गंदगी रहती थी और स्कूल वालों को सिर्फ़ पैसों से मतलब रहता था।
वैसे यह एक बहुत बड़ा सच है कि जो समाज शिक्षा, भाषा आदि विषयों के संदर्भ में जागृत नहीं है, उसमें बच्चों को इस नरक से गुजरना ही पड़ेगा।
http://khabar.josh18.com/news/10369/3
http://khabar.ndtv.com/2009/02/28134202/Delhi-school-280209.html
इन स्कूलों में पढ़ाई के स्तर की सच्चाई तो मैं एक छात्र के रूप में भी जान चुका हूँ। जब एक शिक्षक पर दो सौ लड़कों की जिम्मेदारी होती है, तो हर छात्र खुद को उपेक्षित महसूस करता है। सीबीएससी की मान्यता के नाम पर ये स्कूल लाखों-करोड़ों कमा रहे हैं, लेकिन छात्रों के हितों से इनका कोई लेना-देना नहीं होता है।
पटना के एक प्राइवेट स्कूल में बड़े अरमानों के साथ दाख़िला लेने के बाद बहुत जल्दी मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया। इस स्कूल में छोटे कमरे में 50-60 छात्रों को पढ़ाया जाता था। हर क्लास में 4-5 सेक्शन होते थे। टीचरों को बच्चों की पढ़ाई से कोई लेना-देना नहीं था। वे क्लास में आते, यंत्रवत् पढ़ाते और किसी के कुछ पूछने पर डाँटने, खीझने आदि का हथकंडा अपनाकर प्रश्न को टालने की कोशिश करते।
इस स्कूल को सीबीएससी की मान्यता कैसे मिली थी, यह आज भी मेरे लिए एक बहुत बड़ा रहस्य है! आज ऐसे स्कूल हर शहर में खुल गए हैं। इन स्कूलों में छात्रों और उनके माता-पिताओं का हर तरह से शोषण किया जाता है।पैसे कमाने के लिए ये 5 रू. की कॉपी को 50 रू. में बेचने से लेकर हर साल बेतहाशा फ़ीस बढ़ाने तक कोई भी हथकंडा अपना सकते हैं।
जिस स्कूल में मैं पढ़ा था, उसके होस्टल में ककड़ वाली ऐसी दाल मिलती थी जो शायद जेल की दाल से भी बदतर थी। लड़कों को एक बड़े हॉल में सोना पड़ता था। हर जगह गंदगी रहती थी और स्कूल वालों को सिर्फ़ पैसों से मतलब रहता था।
वैसे यह एक बहुत बड़ा सच है कि जो समाज शिक्षा, भाषा आदि विषयों के संदर्भ में जागृत नहीं है, उसमें बच्चों को इस नरक से गुजरना ही पड़ेगा।
टिप्पणियाँ
घुघूती बासूती
Sorry, I can't type in Hindi - don't know how to.