क्या सचमुच हमारे मस्तिष्क में लाखों वर्षों की सूचनाएँ संचित हैं?

अगर मैं आपसे यह कहूँ कि दुनिया के हर व्यक्‍ति की मानसिक उम्र दो या तीन लाख वर्ष या शायद इससे अधिक है तो शायद आप मुझे मूर्ख समझेंगे। लेकिन जब आपको यह पता चलेगा कि यह बात बीसवीं सदी के महानतम मनौवैज्ञानिकों में से एक कार्ल गुस्ताव जुंग के मुँह से निकली थी तो शायद आप इस बात पर गंभीरतापूर्वक विचार करेंगे। कार्ल गुस्ताव जुंग (1875-1961) ने यह बात अपने सामूहिक अवचेतन सिद्धांत में संदर्भ में कही थी। इस सिद्धांत के अनुसार हर व्यक्‍ति के मस्तिष्क में मानव जाति के आदि काल से लेकर अभी तक के तमाम अनुभव संचित होते हैं। 



जुंग ने इस सिद्धांत की सत्यता के लिए अपने कुछ व्यक्‍तिगत अनुभवों को प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया था। जुंग ने बचपन में एक गुड्डा बनाया था। कई दशकों के बाद उन्होंने अपने एक शोध के दौरान किसी  जनजाति के भगवान औऱ उस गुड्डे की शक्ल में आश्‍चर्यजनक समानता देखी। इस घटना की व्याख्या वह इस तरह करते थे कि उनका अवचेतन उस शक्ल से अपरिचित नहीं था और इसलिए उनसे गुड्डे की वह शक्ल बन गई। कुछ शंकालु यह भी कह सकते हैं कि जुंग ने वह शक्ल किसी किताब में देखी होगी। लेकिन जुंग ने इस संभावना को पूरे आत्मविश्‍वास के साथ नकार दिया था। सामूहित अवचेतन सिद्धांत के अनुसार हमारे अवचेतन में उन देशों से संबंधित जानकारी भी संचित है जहाँ हम कभी नहीं गए। यह जानकारी हमें विरासत में मिलती है, मगर इसे अवचेतन की गुफा से निकलना लगभग असंभव है। 

कितना अच्छा होता अगर हम अपने अवचेतन से अपने काम की बात याद कर सकते। अगर ऐसा करना संभव होता तो हमारे लिए बहुत-से काम आसान हो जाते। उदाहरण के लिए, हमें इतालवी सीखने के लिए बहुत मेहनत नहीं करनी पड़ती। हमें बस अपने अवचेतन मस्तिष्क के इस भाग को जागृत करना होता जहाँ इतालवी से संबंधित जानकारी और अनुभव संचित हैं। लेकिन ऐसा सोचना अभी दूर की कौड़ी है। अवचेतन तो अवचेतन होता है। यह हमारी चेतना की पहुँच से दूर होता है। यह अपनी मर्जी से हमारी चेतना में प्रवेश करता है और अपनी मर्जी से गायब हो जाता है।                       

टिप्पणियाँ

Murari Pareek ने कहा…
अगर अवचेतन मन से वो बातें निकाल सकते तो बहुत बड़ी उपलब्धता मिल जाती !!
आमीन ने कहा…
अच्छी बात बताई है आपने...

http://dunalee.blogspot.com/

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